Sunday, September 26, 2010

धरम री बाड़ रूखाळ करै

धरम री बाड़ रूखाळ करै
माण-मरजादा री
काण-कायदा री
रीत- रिवाजां री
तीज- तिंवारा री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
रिस्ता-नातां री
गांव-गवाड़ी री
खेत-खळां री
देस-दिसावर री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
राज-समाज री
लाज-सरम री
बिणज-बौपार री
जलम-मरण री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
भूल्या-भटक्यां री
पापी-दुस्मियां री
जीव-जिनावरां री
भूखा-तिरसा री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
भाईचारै-मिनखाचारै री
बोल-बतळावण री
नाप-तोल री
जस-अपजस री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
भूंड-भलाई री
ब्यांव-सगाई री
मोट-मिजाज री
मान-गुमान री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
पढाई-लिखाई री
गुण-औगण री
पाप-पुन री
सरग-नरग री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
गढ-कोटां री
हाट-बजारां री
घर-गळी री
हरख-बधावै री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
सील-सुभाव री
सत-पत री
आस-औलाद री
जात-पांत री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
सूरां-वीरां री
साधु-संता री
हठ-हठीलां री
प्रण-पक्कां री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
हेत-हेताळूवां री
प्रीत-प्रीतम री
राग-सौरठ री
कवि-कलमा री
धरम री बाड़ रूखाळ करै
दसूं-दिसावां री
न्याव-अन्याव री
जोग-संजोग री
भाग-दुरभाग री

विनोद सारस्वत,
बीकानेर।







Saturday, September 25, 2010

{राजस्थानी गीत} लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै!

कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

वेद उपज्या इण धरणी पर, वेदां में बखाणी रै।
वेदां रै बखाण सूं आ तो सीधी नीसर आई रे ।।
रिसिया रै परताप आ तो कूंचै-कूंचै छाई रै।
कवियां री कलमां में आ तो मात सुरसत बणगी रे।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

गढपतियां री ढाळ नैं तलवारां मांही सजगी रै।
वीरां रो तो बागौ बणगी, बेरयां माथे कड़की रै।।
सतवंतिया रौ सत बणगी, जौहर रास रचायौ रै।
कामीड़ां तो जमपुर देख्यौ, पल्लै कीं नी पायौ रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

कवि चन्द्रवरदाई काळ बणनैं बैठ झरोखां आयौ रै।
मार-मार मोटी तोई, ओ भासा ग्यान करायौ रै।।
इण रै ही परताप सूं तो मोहम्मद गौरी मर~यौ रे।।
अजमेरी चौहाण राजा धरम सनातन पाळ~यौ रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

रैदास सरीखा गरूवां मीरां नैं साचौ पाठ पढायौ रै।
भाव-भगती में इसी डूबी, देख जगत चकरायौ रै।।
मिसरी सी मीठी भासा में गिरधर गोपाळ रिझायौ रै।
सैंदे भगवान आप पगट~या, मीरां नैं दरस दिखायौ रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

अजमलजी रा तीखा बैण द्वारकानाथ मन भाया रै।
रामदेवजी रो अवतार ले, मात मैणादे घर आया रै।।
पिछम धरा रौ ओ देव रामदेव पीरां रौ पीर कैवायौ रै।
धजा फरूकै असमानां इण री परचां रौ कोई नी पार रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

करमा री आ भौळी भासा तिरलोकीनाथ नैं भायी रै।
गटागट जीम्यौ खीचड़ौ, डिकार भी नीं लीधी रै।।
मीठी, मधरी इण भासा री बाण भगवान नैं घण सुहाई रै।
थै! परभासा रा हेटवाळ बण क्यूं नकटाई धारौ रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

सगळा संत, सती अर सूरमा राख्यौ माण सवायौ रै।
देव-पितर जूझार भोमियां हाको-हाक मचाई रै।।
इटली सूं टेस्सीटोरी आय अठै राग राजस्थानी गायी रै।
जोर्जे  ग्रिएर्सन  अर सुनीति चटर्जी साख इण री बधाई रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

लंगा अर मांगणियारां गूंज सात समंदा पार गुंजाई रै।
गुलाबो अर कोहिनूर जैड़ां घमक धणी मचाई रै।।
लिखांरां री कलमां घसगी, कवियां कंठ गळग्या रै।
झार-झार रोवै मायड़ भासा, इसड़ा कांई जणिया रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।

कै तो बीज बदळग्यौ इण धरणी रौ कै लागी खोटी निजर रै।
कै तो जापा बिगड़ग्या मांवा रा, कै गळसूंठी खोटी रै।।
कै तो सतियां रौ सत गमग्यौ, कै खागां रै लाग्यौ काट रै।
कै तो रजपूती रांड हुयगी, भरम कूड़ियो पाळयौ रै।।
कूड़ी बाण छोडौ भाईड़ां कूड़ी स्यान छोडौ रै।
लाजै मायड़ भासा थांरी, लाजै मायड़ भौम रै।।
विनोद सारस्वत,
बीकानेर


















Sunday, September 19, 2010

हिन्दी नैं लाग्यौ सूतक, इण रा पौत चवड़ै!

    हिन्दी भासा नैं लेय’र आज च्यारूं कांनी घमसाण मचण लाग रह्यौ है। इन्दौर में लारलै दिनां केई हिन्दी अखबारां री होळी इण कारण बाळीजी कै वै अखबार वाळा हिन्दी ने हिंगलिष बणादी। इण सूं पैली भी इण देस में हिन्दी नैं लेय’र नीरा आंदोलन व्हिया है तोड़ाफोड़ी नैं आग-बळीता तकात व्हिया है। हिन्दी री हेटवाळी नीं करण अर आपरी मायड़ भासा नैं आपरै प्रदेस री सिरमौड़ बणावण सारू उण वगत 63 तमिल लोगां आपरा प्राण होम दीधा पण हिन्दी री हेटवाळी मंजूर कोनी करी।
    असल में तो जूने वगत में हिन्दी भासा रौ नांव-निसाण ईज नीं हो पण आर्यावृत में जद मुगला रा पगलिया मंडया अर मुगलां आपरी राजधानी दिल्ली थरपी उण वगत दिल्ली अर मेरठ रै बिचाळै खड़ी बोली रौ वपरास हौ। मुगलां नैं अठै रा लोगां सागै बोल बतळावण अर राज करण सारू अेक भासा री जरूत लखाई तद वां इण खड़ी बोली रै साथै उर्दू अर अरबी रौ भेळ बणाय नैं गुडाळियां चलावतां पगेवाळ करनै अेक नूंवी भासा खड़ी करदी।
    वैदिक भासा संस्कृत रै ’स’ आखर री गूंज फारसी में ’ह’ रै सरूप मिळै। इण कारण संस्कृत रै सिंधु अर सिंधी सबदां रौ फारसी सरूप ’हिन्द’अर ’हिन्दी’ आखर फारसी भासा रा ईज है। इण कारण आ बात डंके री चोट कैयी जा सकै कै ’हिन्दी’, ’हिन्दु’ अर हिन्दुस्तान सबद फारसी भासा सूं आया है। इण कारण मुगलां री पगेवाळ करयौड़ी भासा हिन्दुस्तानी बणगी। जिण वगत दिल्ली में सत्ता मुगलां रै हाथां ही उण वगत री देषी रियासतां में भी राजकाज मांय देसी भासावां रै सागै अरबी, उर्दू अर फारसी सबदां री बोळगत बढगी। जिण भांत हिन्दुस्तानी भासा में इण भासावां रौ वपरास बधतो रेयौ उणी भांत देसी भासावां भी इणसूं अछूती नीं रैयी।
    इण पछै जद मुगलिया काल आपरी छेकड़ली सांसा गिण रेयौ हो उण वगत अठै अंग्रेजां रा पग मंडाण व्हिया तो अंग्रेजी भासा रौ असर भी साफ दीखण लागग्यौ। पण जिकी देसी रियासतां ही वांरा राज-काज रा सगळा काम आपू आप री भासा में ईज व्हैता। अठीनैं जद समूचै आर्यावृत में अंग्रेजा नैं बारै काढण री हूंकार मची अर न्यारा-न्यारा पाळा मंडग्या। गांधीजी रै हरावळ में कांग्रेस पार्टी आपरौ आंदोलन चला रैयी ही तो दूजै कांनी मोहम्मद अली जिन्ना भी मुस्लिम लीग रै नांव माथै आपरौ न्यारौ मोरचो मांड लियो हो। अठीनैं प्रजा परिसद अर आरएसएस भी आपरा पाचिया टांग लिया हा। अबै खासकर उतरादै भारत में भासा नैं लेय’र अेक न्यारौ ईज रूप देखण में आयौ अठै हिन्दूवादी पार्टियां सगळा सूं आ अरज करी कै वै हिन्दी रै सागै आपू आपरी भासावां भी देवनागरी में लिखै। लोगां में हिन्दुत्व रौ अेक नूंवो जोस जागग्यो हो अर सगळा लोग लकीर रा फकीर बणग्या। अठीनैं जद धर्म रै नांव माथै देस आजाद हुय नैं दो फाड़ हुग्यौ। हिन्दी नैं राती-माती करण रा जतन सरू व्हैग्या। उण मांय सूं उर्दू रा सबदां नैं काढण अर संस्कृत रा तत्सम सबदां रौ घणै सूं घणौ वपरास करण री आफळ करीजी।
    रातूंरात नूंवी पोथियां लिखीजी, अनुवाद व्हिया, सेठ लोगां अखबार निकाळया अर राज रा सीरवाळ बणग्या तो केई धर्म रा ठेकेदार बणग्या। धर्म री दुकान चलावणियंा तो थोड़ी फोरबदळ रै सागै संस्कृत रै पांण आपरो मुकाम पा लियो पण अखबार, पोथ्यां छापण वाळा अर सिनेमा वाळा इण प्रयोग सूं अलायदा रैया। आज भी वै उर्दू अर अंग्रेजी रै बिना पांवडौ नीं धर सकै।
दूजे सब्दा में केवा तो आज री आ हिंदी उर्दू रो इज दूजो हिंदी वर्जन है. अर सीधी-सीधी केवा तो जिया अंग्रेजी २०० साल रे ब्रितानिया राज री गुलामी री सेनानी है तो आ तथाकथित हिंदी ५०० साल रे मुगलिया राज री गुलामी री सेनानी है जीकी आज टीवी अर बॉलीवुड रे जबके अर जोर रे सागे आपरी मनमानी चला रेई है. जिका लोग बॉलीवुड री फिल्मा ने हिंदी री बतावे वे घणी गाफल में जी रिया है. केई धार्मिक फिल्मा अर क्षेत्रीय  भाषावा री घाण ने पस्वाड़े राखदा तो ऐक भी फिल्म ने खाटी  हिंदी री फिल्म नी केय  सका.  जिण भान्त आ भाषा खुद ऐक खिचड़ी है उनी भान्त उर्दू री बोल्गत रे सागे क्षेत्रीयता रो तडको   लगा ने बनावनिया फिल्मकार भी आ बात जाने के म्हे काई चीज पुरस रिया हां. लोग फिल्मा देखे मोजमस्ती सारु. अर बॉलीवुड इन मामला में किनी भान्त री कमी नी राखे. मजे री बात आ के ऐ सागी इज फिल्मा भारत रे बारे पाकिस्तान अर दूजा मुस्लिम देशा में घणी सागीड़ी चाले अर लोग घणा मोदिजे के देखो हिंदी आज भारत सु बारे भी चाल रेई है.  जद लोग वारी फिल्मा देख ने फिल्मकारा ने  निहाल करदे तो वाने भाषा री काई टाट मारनी है. इत्तो ही नी फिल्मा में काम करणिया कलाकारा ने भाषा बोलनी भलाई मती आवो. भाषा रे सींग-पूंछ रो ही ज्ञान मती हुवो पण फिल्म चाल्गी तो चाँदी ही चाँदी. बॉलीवुड फिल्मा रो ओ नागो सांच भी इण बात ने प्रतख करे के हिंदी री चास्णी में पुरसीजण वाली आ मिठाई उर्दू री है.  मिठाई रो स्वाद मीठो इज व्हे सो खावण में काई हरजो है?  आ खावण सू सुगर बधे तो बधो फूट्या भाग खावनिए रा!
दूजी कांनी हिन्दी रा लूंठा साहित्यकार भी आपरी मायड़ भासावा री बळी देय’र आपरी भासावां नैं इण रै फिदू खाते में खतावंता रैया। अठीनैं जद राज आपरी डांग रै जबकै सूं इण भासा नैं राष्ट्रभाषा  रै सरूप थरपणी चाही तो उण रौ सागीड़ौ विरोध व्हियौ अर पंडित जवाहर लाल नेहरू नैं आपरा पग पाछा मेलणा पड़िया।
    अबै खेल सरू व्हियौ इण नैं राजभासा बणावण रौ। सो इण सारू भारत री सरकार 1956 में राजभासा विधेयक पास करायो अर इण नैं लागू करण सारू भारत रा भाग्यविधातावां उतरादे भारत रा राजनेतावां नैं साम दाम दंड भेद सूं गुडा़ दिया अर वै भारत रै भाग्यविधातावां रै आगे टंटा टेरता थका पागड़ी तो पागड़ी, तागड़ी खोलावण नैं भी त्यार हुयग्या। तद रो राजपुताना अर आज रै राजस्थान में इण राजभासा विधेयक नैं चोर बारणै सूं रातूंरात कद थरप दियो लोगां नैं ठा ईज नीं पड़ियौ। संसार में इसड़ी तानाषाही रो दूजो कोई सबूत नीं मिल सकै। 500 साल रो मुगल राज अर 200 साल रो अंग्रेज राज जिको काम नीं कर सक्यौ वो काम जोरामरदी अेक अधिनियम रै जबकै भारत रा भाग्य विधातावां कर दियौ। राजस्थानी भासा री जूनी मुड़िया लिपि तो पैली ही धर्म रै नांव माथै बळिहार कर दीवी ही। अबै जबान भी खोसली। अठै रा लोगां नैं मायड़ भासा में भणण रा अधिकार खोस लीना अर अेक अधकिचरी भासा में भणार लोगां नैं ठोठ बणावण रौ पक्को जापतो कर दीधो। अठै रा लोगां नूंवै देस नैं मजबूत करण री हूंस में आपरी भासा री बळी देयदी अर इण भासा नैं अेक नवाचाार रै रूप में अंगेजली।
    पण अठै रा लोगां में मायउ़ भासा सारू हेत आज भी हबौळा लेवै अर वै आपरी मायड़ भासा नैं माण दिरावण सारू हरैक मोरचै पर आपरी लड़ाई लड़ रैया है। जिकौ गळत काम राजस्थान री पैलड़ी सरकार करयो उण री भरपाई सारू राजस्थान री अषोक गहलोत सरकार 2003 में राजस्थान विधान सभा सूं अेक सरब सम्मति रौ प्रस्ताव पास कर नैं कर दीधो है। इण सारू अषोक गहलोत रो नांव इतिहास में अेक ठावी ठौड़ राखैला।
राज रै डंडे रै जोर सूं अठै रा लोगां माथै हिन्दी मढ तो दी पण हिन्दी अेक अधकिचरी भासा है इण रा प्रतख प्रमाण अठै रा राज रा मारजा आज भी देवै। लारलै दिनां दैनिक भास्कर रै अेक सर्वे में आ बात सैमूंडै आई कै अठै रा गरूजणा नैं टाबरां नै सावळसर समझावण सारू मायड़ भासा रौ ईज सायरौ लेवणौ पड़ै क्यूंकै हिन्दी में समझायोड़ो छोरां रै पल्लै नीं पड़ै। संस्कृत भासा री अेक मास्टरणीजी बतायौ कै म्है टाबरां नैं संस्कृत पढावण सारू मायड़ भासा राजस्थानी रो ईज सायरौ लेउं। वां इण बात नें प्रतख करी कै हिन्दी भासा में वा लूंठाई नैं सबदां री बोळगत कोनी कै म्हैं टाबरां नैं पढा सकूं। वां आ बात भी घणै हरख रै सागै सीकारी कै राजस्थानी भासा संस्कृत रै जोड़ री है अर इण नैं आप रो हक मिलणौ चाईजै।
    सो हिन्दी भासा रा सगळा पोत चवड़ै है आ किणी सूं छानी कोनी। फेर इण रै रास्ट्रभासा व्हैण रौ भरम क्यूं पाळौ। क्यूं इण रै दुख में दूवळा व्हौ। मायड़ भासा राजस्थानी सारू अेकठ हुय नैं हुंकारौ भरौ। जय राजस्थानी।ं
विनोद सारस्वत,
बीकानेर.