Tuesday, September 8, 2009

भावां रा भतूळ

भावां रा भतूळ

बाळपण, जोधपण अर बुढापौ

जिण गत ढळतो जावै है

उणी गत हियै में उपज्या

भावां रा भतूळ,

बंबूळ बण

तीखा तीर चलावै है।

मत ठामो बेलीड़ां!

भावां रै इण भतूळ नैं

उठण दो उफाण,

ढाब्यां ओ ढबै नीं।

हियै री कूख सूं

उपज्या भाव

सगळी सींवा

तोड़ण री खिमता राखै।

रजपूती रंग में रंग्या भाव

खागां खड़कावण में

पाछ नीं राखै।

क्यूं हियै उपज्या

भाव?

म्हनैं खुद नैं ओ

लखाव कोनी।

म्हैं भी कदै जोधपण में

भारत भाग्य विधाता गातो हो

इण री स्यान में

लुळ-लुळ

सिर नुंवातो हो।

देस रा दुस्मियां सांमी

कदै गोडा नीं टेक्या

अर पत्रकारीय धर्म

निभातो हो।

पण आज चाळीसी

उमर में

देस भगती

रो राग छोड’र

कलम पकड़णिया हाथ

खागां खड़कावण

री मन में क्यूं राखै?

नीं जोइजै म्हनैं

कोई राज री चाकरी

अर नीं है म्हनैं

पुरस्कारां री चावना

अर नीं है

किणी मान-संनमाण

री दरकार।

फैरूं क्यूं उठै?

हियै में भावां रा

तीखा भतूळ!

क्यूं बिन भासा री

मानता रै

आजादी

अधूरी अर लोकतंत्र

खारौ जहर लागै है?

म्हारै खुद रै ही

हाथां में नीं है

बेलीड़ां इण री

कोई मोरी नैं

लगाम! कै

ठाम सकूं

भावां रै हण

भतूळ नैं।

भावां री आजादी

पर किणी सरकार

रौ बख नीं चालै।

सो खुले खाळै

बगण दो भावां रै

इण उफाण नैं।

गूंगी बोळी सरकार

नीं समझै

धरणा अर मुखपती

री भासा

वा समझै फगत

बम बारूद री भासा

गोळी रा गरणाटा

आग-बळीतां रै

धूं रा गोटां

मिनखां री बिछती ल्हाषां

जद क्यूं?

ढबै भावां रा भतूळ।


विनोद सारस्वत, बीकानेर

1 comment:

  1. भोत ही सुणो प्रयास है..
    लाग्‍या रो..

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