Tuesday, April 20, 2010

मुख्यमंत्री जी रै नांव खुली पाती!

आदरजोग मुख्यमंत्री जी, अशोक गहलोत सा, गढ बीकाण सूं विनोद सारस्वत रा पगै लागणा मानज्यौ सा। आगे म्हनैं आप रै राज में इसी कोई खास बात निगै नीं आ रैयी है जिण सूं ओ लखाव व्है कै राजस्थान में सत्ता बदळीजी है! आप री सरकार रौ इसौ कोई काम नीं दीख रह~यौ है जिण सूं ओ लखाव व्है कै आ जनता री चुण्यौड़ी लोकतांत्रिक सरकार है। आप री टी वी अर अखबारां में घणी ही धन धन व्है रैयी है पण साची बात तो आ है कै इण सूं जनता री गाढी कमाई लाली लेखे लागण रै टाळ कीं नीं व्है रह~यौ है। टी वी अर अखबारां में लूंठा-लूठा विज्ञापन छपवाय नैं आप मन में मोटा भलांई व्हो पण इण सूं गरीब रै पेट री दाझ नीं बूझै। मतलब हांती थोड़ी अर हुल हुल घणी।
वसुंधरा राज भी आप री तर~यां ही चाल रह~यौ हो पण उण सरकार रा विकास रा काम लोगां नैं सांमी दीखै। हां आ बात साची है कै इण कामां में जम’र जीमण-चाटण व्हिया, जिणां रौ भोग तद रा राजनेतावां अर अधिकारियां कर~यौ। पण आप रै राज में तो इसौ कीं नीं दीठै, फैर भी आप री धन धन व्है रैयी है। आप रै राज में नरेगा योजना में भी इणी भांत रा जीमण-चाटण व्है रह~या है-आप घणी ही लूंठी लूंठी योजनावां रा बखाण करौ पण साची बात तो आ है कै आम आदमी री माळी हालत में कोई सुधार नीं व्हियौ।
आप री सरकार री सगळी योजनावां ही फगत रीत रौ रायतौ बणती सी लागै। हुकुम, भुखो तो धायां ही पतीजै। आप री अे योजनावां उण री भूख मेटण में पूरी तर~यां विरथा रैयी है। कवि मोहम्मद सदीक साहब री कविता मुजब ‘‘थै मजा करो महाराज आज थांरी पांचू घी में है, म्है पुरस्यो सगळौ देस और थांरै कांई जी में है। गळी, गळगळी होय गांव री बिलखै साख भरै अरे, लूचा लूंटै माल मसखरा मीठो नास करै।’’ आ कविता सदीक साहब तीसेक साल पैली लिखी ही अर आज भी हालत वा ही है इण में कोई फरक नीं आयौ।
म्हनैं साफ लागै कै लोकतंत्र अठै आय नैं हारग्यौ। राजसाही नैं लोग पाछी चेते करण लागग्या। राजसाही री वगत जिका पक्का काम व्हिया वै आज भी इण लोकतंत्र नैं चिड़ावै अर लोगां रै माथै चढ नैं बोले कै ओ राज ठीक है या बो राज ठीक हो। आ तो आप नैं भी मानणी पड़सी कै आज भी आप रै शाषण में खास थंब है वो राजसाही रो ईज है। लोकसाही मे बणयौड़ी ऊंची-ऊंची आभै नैं नावड़ण री आफळ करती अटटालिकावां कदै भी धुड़ सकै अर धुड़ रैयी है पण राजसाही रै वगत रा बण्यौड़ा जूना ढूंढा हाल तकात बजर बंट बैठा इण लोकसाही पर आंगळी उठांवता निगै आवै। लोकसाही में घणकरा सरकारी दफ्तर आज भी राजसाही रा वा ढूंढा में ईज चालै। उण वगत री राजसाही भी काळ-कसूंबै लोगां नैं रोजगार देवण रा जतन करती पण इण रै हैठळ वै पक्का काम करांवता। पण आज अकाळ राहत रा कामां में सड़कां पर सूं धूड़ौ हटावण रै टाळ कोई दूजो काम नीं व्है रह~यौ अर ओ ईज हाल नरेगा रौ है।
राजसाही रा लोग भी मानता कै भींतड़ा {गढ-कोट} ढह जासी पण गीतड़ा रह जासी। पण वांरा तो हाल भींतड़ा भी कोनी ढह~या अर गीतड़ा तो गाईजता ईज रैसी। सो हुकुम इण लोकसाही में तो म्हनैं इण दोवूं बातां में ही गोळ लागै। क्यूंकै इण लोकसाही अठै री भासा, साहित्य अर संस्कृति नैं तळै बैठावण में कोई कमी नीं राखी। अठै राजपुताना में हिन्दी थरप’र इण क्षेत्र नैं अेक चरणोई रौ रूप दे दीनौ है, जठै हरैक प्रांत रा गोधा चर रैया है अर इण गोधां नैं जै गोधा केवौ तो अै सींग औरूं मारै। अठै रा जाया जलम्या छोरा इण गोधां रै आगे मेरिट री कुश्ती में नीं टिकै अर सरकारी नौकर~यां पर प्रांतियां रै हाथां में आ ज्यावै। राज में ऊंची-ऊंची नोकर~यां में पूग’र अठै रा लोगां नैं देस भगती अर कानून रा इसा पाठ पढावै कै अठै रा राजनेता वांरै आगे पागड़ी तो पागड़ी तागड़ी खोलावण नैं भी त्यार व्है जावै।
इसौ कुजोग भोगणौ पड़ रह~यौ है अठै रा राजनेतावां नै। म्हारी बातां खारी व्है सकै, पण खरी है। आप खुद नैंम धरम नैं सैमूंडै राख’र इण साठ बरसी लोकसाही परख राजसाही सूं करोला तो आप नैं भी ठा पड़ ज्यासी। पण म्हनै लागै कै आप इण नैं भी आ कैय नैं टाळण री चेस्टा करोला कै अे सैंग सुणण में आछा लागै पण बरताव में अैड़ौ नीं व्है सकै। सौ कीं व्है सकै पण इण सारू साची ऊरमा अर हियै में अेक हूंस व्हैणी जोईजै। आगे म्हैं म्हारी सीधी बात पर आऊँ जिण सारू म्हारै हियै में अेक पीड़ है अर आ इत्ती बडी भूमिका पोळाई है। म्हैं बात करूं आपां री, थांरी-म्हारी अर इण समूचै राजपूतानै री मायड़ भासा राजस्थानी री। आज इण भासा री कांई गत व्है रैयी है आ बात आप सू भी छांनी कोनी। आप किण मजबूरी रै पांण 2003 में राजस्थान विधान सभा सूं सरब सम्मति सूं प्रस्ताव पास करवाय नैं भारत री सरकार नैं भेजायौ हो? म्हनै इण बात रौ ज्ञान कोनी। पण कित्तै दुरभाग री बात है कै राजस्थानी भासा नैं संविधान री आठवीं अनुसूचित मे भेळण में भारत री सरकार ओसका ताक रैयी है। अठिनैं आप रै राज में राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति अकादमी अेकदम बापड़ी बणगी है, अठै नीं तो अध्यक्ष, सचिव है अर नीं ही कार्य समिति अर सामान्य सभा। अकादमी री मुख पत्रिका ‘‘जागती जोत’’ डेढ बरस सूं छप नीं रैयी है। कांई आ ईज है इण लोकराज री भासा संस्कृति नीति? म्हनैं ठा नीं आप इत्ता परबस क्यूं हो?
आज बारला मुटठी भर लोग आपां री भासा पर सवाल खड़ा कर रैया है। आप रा शिक्षा मंत्री अठै री मायड़ भासा हिन्दी बता रैया है। राजस्थान रा कवि, लेखक, हेताळू आद सगळा बोक बोक नैं आ बता रैया है कै म्हारी मायड़ भासा राजस्थानी है। इत्तौ की हुय रह~यौ है पण आप मौनी बाबा री तर~यां मून क्यूं धार राखी है? आप कोई पडूतर क्यूं नीं दे रह~या हौं? आप नैं किण बात रौ संको नैं डर है? आप छाती चवड़ी करनैं क्यूं नीं बोलो? कै म्हारी मायड़ भासा राजस्थानी है. आप हिन्दी रा इत्ता लटटु कींकर व्हैग्या? आप इण लीक नैं क्यूं नीं तोड़ौ? क्यूं नीं आप, आप रै हरैक भासण में राजस्थानी ईज बोलण रौ संकल्प लेवौ? देखां आप नैं कुण रोकै? आप माथै राजस्थान री जनता जनार्दन रौ आसीरवाद है। आस राखूं कै आप पर म्हारी इण बातां रौ असर व्हैला? अर आप हाथूंहाथ राजस्थानी भासा रौ माण बधावण रौ काम कर नैं जस रा गीतड़ा लिखावौला। नींतर म्हैं आ ईज समझूंला कै हिन्दी राजस्थान पर थरप्योड़ै अेक नूंवै उपनिवेसवाद री भासा है अर राजस्थान भारत रौ उपनिवेस है। जदि आप नैं म्हारी बातां खरी लागै तो कोई इसौ पग उठावौ कै सगळां री बोलती बन्द व्है जावै। इणी आस रै सागै। जय राजस्थान, जय राजस्थानी।


विनोद सारस्वत

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