Wednesday, July 1, 2009

मायड़ रो हेलो है!

मायड़ रो हेलो है!

राजस्थान अर राजस्थानी रा सैंग हेताळूवां नै विनोद सारस्वत रा मोकळा-मोकळा रामा-स्यामा। बडा नैं पगै लागणा अर छोटां नै आसीस। साथीड़ां आपां रौ ओ जीवण कदैई सांसा छोड सकै, घड़ी पलक रो ही विस्वास कोनी। आपां रा ऐ ऐश-अराम, धन माया इण माटी में इज मिल ज्याणा छै। आपां जीवां या मरां कोई फरक नीं पड़ै, पण आपां री संस्कृति जुगां जुगां लग जींवती रैसी।

किणी भी संस्कृति री पिछाण उण री भासा सुं व्हिया करै, पण घणै दुरभाग री बात छै कै आप आपां री मायड़ भासा राजस्थानी री जिकी दुर्गत व्है रैयी छै, उण रा जम्मेवार आपां खुद छां। आजादी रै साठ बरसां पछै भी राजस्थानी भासा नैं संविधान री मानता नीं मिलणी साबत करै छै कै आपां किता नाजोगा छां। राजस्थानी भासा रौ बखाण नैं बिड़दावणो करूं तो स्यात उमर ही छोटी पड़ ज्यावै अर कैई जलम लेवणा पड़ै जद जाय'र इण रौ बखाण कियौ जा सकै।

पण साथीड़ां भारत देस अर राजस्थान प्रदेस री ऐ लोकतांत्रिक सरकारां साठ बरसां सूं आपां री भासा अर संस्क्रति नैं रिगदोळ रैयी छै। मायड़ भासा में पढण लिखण रा मौलिक अधिकार खोस लिया। साठ बरसां सूं हिन्दी रै हेवै हुयोड़ा मायड़ भासा नैं बिसरग्या। आज आपां हिन्दी में बोल'र टाबरां नैं माडाणी अधकिचरी हिन्दी अर अंग्रेजी बोला'र घणा मोदीजां-पोगीजां। इण रै लारै तरक दियौ जावै कै इण सूं टाबर हुंसियार हुसी नैं नौकरी में सबीस्तो मिलसी। आ एक गळत धारणा है जिकी नैं तोड़णी पड़सी। ध्यानजोग छै कै जिका परदेसां रा टाबर आपू-आप री मायड़ भासा रै माध्यम सूं पढै, वांरी अंग्रेजी घणी सांवठी नैं मजबूत व्है, जदकै राजस्थान मांय तथाकथित हिन्दी माध्यम सूं पढणिया री अंग्रेजी किसीक है?

आ किणी सूं छानी नीं छै अर प्रतियोगी परीक्षावां में राजस्थानियां रै पिछड़ण रौ सैसूं बडो कारण छै। टाबर मां रै हांचळां सूं दूध चूंगतो थको पैलीपोत आप री जबान सूं आप री तोतली बोली में बोले, वा ही उण री मात भासा व्है, जिकी संसार री किणी पोसाळ में नीं पढाईजै। बल्कै वा उण में सींचीज्योड़ै रगत सूं उपजै। उणी नान्है टाबर नैं जद स्कूल मांय एक ओपरी भासा में पढणौ पड़ै, वा पढाई उण रै हियै कितीक ढूकै? उण री नींव कींकर मजबूत व्है? जिण री नींवां में ओपरी भासा रौ मठो घाल दियौ व्है।

आखै मुलक में स्यात ही कठैई इसौ अन्याव हूंवतो हुसी, जिकौ आपां राजस्थानियां साथै व्है रियौ छै। मतलब भारत रा भाग्यविधातावां एक तथाकथित भासा नैं देस री रास्ट्रभासा बणावण खातर मायड़ भासा में पढण-लिखण रा मौलिक अधिकार खोस लिया। हिन्दी नैं तथाकथित इण वास्ते कहीजी छै कै भारत रा पांच परदेसां नैं टाळ'र हिन्दी कठैई नीं छै। जद देस रैं संविधान में २२ भासावां नैं मानता दे राखी है तद रास्ट्रभासा किसी? जिकी राजस्थानी री बळी लेय'र बणी? "छाछ लेवण नैं आई अर घर री धिराणी बणगी'' राजस्थानी रै थंबा पर टिक्योड़ी इण हिन्दी री हैवाई छोडणी पड़सी। भारत रा भाग्यविधातावां आप रा वचन नीं निभाया पण अबै राजस्थानियां नैं आप री भासा री मानता खातर कमर कसणी पड़सी। जद लग राजस्थानी भासा नैं संविधान री मानता नीं मिळ जावै, तद लग आ आजादी, लोकतंत्रा, तीज-तींवार, होळी-दीवाळी आद कोई मायनो नीं राखै।

जागो, जवानां जागो! सूतोड़ां नैं जगाईजै पण जागता ही घोररावै वांनै कुण जगावै? आपां जागता ही धोरा रिया हां इण धारणा नैं बदळो अर ओ संकळप लो कै अबै ओ अन्याव सहन नीं करांला। इण सनेसै नैं जादा सूं जादा लोगां तक पुगावो, ओ ही आज मायड़ रो हेलो छै। जय राजस्थान, जय राजस्थानी।
- विनोद सारस्वत

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