भगवान है. आ सुणी है.
बात-ख्यात इतिहास में.
पण म्हे सेन्दे देख्या है.
भगवान ने म्हारे
बापजी रे रूप में.
वाऱी छतर छाया
में पलयो, मोटो विहयो.
मनचाही रळी पूरी!
वारे राज में.
आज वाऱी ओळयू में
नेण भर भर आवे.
कुण देवे ओळमा?
कुण देवे साची सीख?
म्हारो रू रू है
वारो करजायत.
विधना रो ओ किस्सों
विधान?
म्हे अभागो
नी दे सक्यो
वाऱी अरथी रे खान्धो!
जीवण भर जीवा-जूण
सू जूझता
परिवार री खेतरपाळ
ने आपरो धरम मान
बगता रेया
जीवण -जुध रे मारग.
कुण करेलो पूरी
म्हारी हरेक जिद्द?
कुण म्हारी हूंस बधावेला?
कुण म्हने उजड़ मारग
बेवण सू रोकेला?
रूठ्ग्या म्हारा रामजी.
म्हारे सू.
विनोद सारस्वत,
बीकानेर.
Friday, October 8, 2010
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wah saa wah....bhot heart touching bat likhi ho,,,, Kmal go sneh .....bhot aachhi rchna,,,, I salute you sir
ReplyDeletebadhiya rachana hai sa.nice
ReplyDeleteआछी कविता है सा …
ReplyDeleteपण … अबै तो ख़ासो बखत हुयग्'यो पोस्ट बदळ्यां नैं
दीयाळी री आगूंच मंगळकामनावां !!
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ReplyDelete**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
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♥ व्हाला भाई विनोद सारस्वत जी ♥
*जनमदिन री हियतळ सूं बधाई !*
** शुभकामनावां !**
***मंगलकामनावां !***
राजेन्द्र स्वर्णकार
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